Sri Banke Bihari je ke sawaiya, 45 of 144
४५.
पांयन नूपुर मंजु बजैं कटि किंकिणि में धुनि की मधुराई।
सांवरे अंग लसै पटपीट हिये हुलसै वनमाल सुहाई॥
माथे किरीट बड़े दृग चंचल मंद हंसी मुखचन्द जुन्हाई।
जै जग मन्दिर दीपक सुन्दर श्री व्रजदूलह ‘देव’ सहाई॥४५॥