Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 24 of 144
२४.
मंजुल मोरपखा छहरै छवि सों जब ग्रीव कछु मटकावत ।
नूपुर की झनकारन पै झुकि ग्वालिन गोधन गीत गवांवत ॥
आननचन्द सु मन्द हंसी ‘रतनाकर’ माल हिये लहरावत ।
देखि सखी वह मैन लजावत सांवरो बेनु बजावत आवत ॥
Krishna in Vrindavan :-)