Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 12 of 144
१२. एक सखी घर सो निकसी, मानो चंदहि देन चली उपमा सी । कोऊ कहै यह काहू की नगरि, कोऊ कहै यह काहू की दासी ॥ मारग बीच मिले नंदनंदन, दै दई कूक मचाय के हाँसी । घूँघट को पट खैंच लियो, तब दोज की हो गई पूरनमासी ॥ This sawaiya verse from