झूला धीरे से झुलावो बनवारी, अरे सांवरिया|
झूला झूलत मोरा जियरा डरत है,
लचके कदमिया की डारी, अरे सांवरिया|
अगल बगल दुई सखियां झूलत हैं,
बीच में झूलें राधा प्यारी, अरे सांवरिया|
This beautiful folk song from Vrindavan, thousands of years old, mentions the Kadam tree which was once in abundance in Vraj. The swing mentioned in this song is on a Kadam tree, which in the rainy season is laden with round, deep yellow ball like flowers. The fruit is eaten. It was also a natural ball used for playing ball games by Krishna and friends.
This big shady tree with large leaves and millions of yellow golden balls is a pretty sight by itself on Indian roads again, thanks to the forest department’s tree planting drive in recent years.
४४.
केहि पापसों पापी न प्राण चलैं अटके कित कौन विचारलयो।
नहिं जानि परै ‘हरिचन्द’ कछू विधि ने हमसों हठ कौन ठयो॥
निसि आज हू हाय बिहाय गई बिन दर्शन कैसे न जीव गयो।
हत भागिनी आंखन सों नित के दुख देखबे को फिर भोर भयो॥४४॥
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आरती प्रीतम प्यारी की, कि बनवारी नथवारी की
दुहुन सिर कनक मुकुट छलके
दुहुन श्रुति कुण्डल भल हलके
दुहुन दृग प्रेम सुधा छलके
चसीले बैन, रसीले नैन, गसीले सैन
दुहुन मैनन मनहारी की
कि बनवारी नथवारी की
आरती प्रीतम प्यारी की, कि बनवारी नथवारी की
दुहुनि दृग चितवनि पर वारी
दुहुनि लट लटिकनि छवि न्यारी
दुहुनि भौं मटकनि अति प्यारी
रसन मुख पान, हंसन मुस्कान, दसन दमकान
दुहुनि बेसर छवि न्यारी की
कि बनवारी नथवारी की
आरती प्रीतम प्यारी की, कि बनवारी नथवारी की
एक उर पीतांबर फहरे, एक उर नीलांबर लहरे
दुहुन उर लर मोतिन छहरे
कनकानन कनक, किंकिनी झनक, नुपुरन भनक
दुहुन रुन झुन धुनि प्यारी की
कि बनवारी नथवारी की
आरती प्रीतम प्यारी की, कि बनवारी नथवारी की
एक सिर मोर मुकुट राजे
एक सिर चूनर छवि साजे
दुहुन सिर तिरछे भल भ्राजे
संग ब्रजबाल, लाडली लाल, बांह गल डाल
‘कृपालु’ दुहुन दृग चारि की
कि बनवारी नथवारी की
आरती प्रीतम प्यारी की, कि बनवारी नथवारी की
४३.
मनमोहन सों बिछुरी जबसों तन आँसुन सौ सदा धोवती हैं।
‘हरिचन्द’ जू प्रेम के फन्द परी कुल की कुललाजहिं खोवती हैं॥
दुख के दिन को काहू भाँति बितै विरहागिन रैन संजोवती हैं।
हम ही अपनी दशा जाने सखी निसि सोवती हैं किधौं रोवती हैं॥
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३५.
मन में बसी बस चाह यही प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूं।
बिठला के तुम्हें मन मंदिर में मन मोहन रूप निहारा करूं॥
भर के दृग पात्र में प्रेम का जल पद पंकज नाथ पखारा करूं।
बन प्रेम पुजारी तुम्हारा प्रभो नित आरती भव्य उतारा करूं॥
३१.
धूरि भरे अंग सोहन मोहन आछी बनी सिर सुन्दर चोटी।
खेलत खात फिरै अंगना पग पैजनियां कटि पीरी कछौटी।।
या छवि कूं ‘रसखान’ विलोकत बारत काम कलानिधि कोटी।
काग के भाग कहा कहिये हरि हाथ ते लै गयो माखन रोटी॥
A Braj sawaiya by poet Raskhan.
This bhajan in Brajbhasha illustrates Krishna’s morning in Vrindavan:-)
jaago bansi vaare lalana, jaago more pyaare re…
rajani beeti bhor bhai e ji
ghar ghar khule kiwaare
gopi dahi mathat suniyat hai
kangan ke jhankaar re…
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