Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 42 of 144
कोटिन काम ग़ुलाम भये जब कान्ह ह्वै भानु लली बन आई॥
16 July, 2010
कोटिन काम ग़ुलाम भये जब कान्ह ह्वै भानु लली बन आई॥
ताहि अहीर की छोहर्या छछिया भर छाछ पै नाच नचावैं॥
ऐसी करा नव लाल रंगीले जू चित्त न और कहूं ललचाई। जो सुख दुख रहे लगि देहसों ते मिट जायं आलोक बड़ाई॥
योगिया ध्यान धरैं जिनको, तपसी तन गारि के खाक रमावै। चारों ही वेद ना पावत भेद, बड़े तिर्वेदी नहीं गति पावैं॥
राधिका जू प्रगटी जब ते तब ते तुम केलि कलानिधि पाई॥
मन में बसी बस चाह यही प्रिय नाम तुम्हारा उचारा करूं। बिठला के तुम्हें मन मंदिर में मन मोहन रूप निहारा करूं॥
Sawaiya verses are part of the rich literary heritage of Braj (Mathura-Vrindavan). They are dramatised in raslila performances. ३४. द्वार के द्वारिया पौरि के पौरिया पाहरुवा घर के घनश्याम हैं। दास के दास सखीन के सेवक पार परोसिन के धन धाम हैं॥