Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 44 of 144
४४.
केहि पापसों पापी न प्राण चलैं अटके कित कौन विचारलयो।
नहिं जानि परै ‘हरिचन्द’ कछू विधि ने हमसों हठ कौन ठयो॥
निसि आज हू हाय बिहाय गई बिन दर्शन कैसे न जीव गयो।
हत भागिनी आंखन सों नित के दुख देखबे को फिर भोर भयो॥४४॥
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