४३.
मनमोहन सों बिछुरी जबसों तन आँसुन सौ सदा धोवती हैं।
‘हरिचन्द’ जू प्रेम के फन्द परी कुल की कुललाजहिं खोवती हैं॥
दुख के दिन को काहू भाँति बितै विरहागिन रैन संजोवती हैं।
हम ही अपनी दशा जाने सखी निसि सोवती हैं किधौं रोवती हैं॥
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