Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 31 of 144 7. May 2010 Music (0) ३१. धूरि भरे अंग सोहन मोहन आछी बनी सिर सुन्दर चोटी। खेलत खात फिरै अंगना पग पैजनियां कटि पीरी कछौटी।। या छवि कूं ‘रसखान’ विलोकत बारत काम कलानिधि कोटी। काग के भाग कहा कहिये हरि हाथ ते लै गयो माखन रोटी॥ A Braj sawaiya by poet Raskhan.