और महीनवा मा बरसे ना बरसे, फगुनवा मा रंग रच रच बरसे|
अरे फागुन को एसो गुन
महल मढ़ई दूनों एक होई जायें
और राजा और रंक दूनों मिल कर गायें|
क्या?
फगुनवा मा रंग रच रच बरसे...
अरे बाग वाली भीजे, बगेचा वाली भीजे
उहों भीज गईली जो निकली ना घर से
फगुनवा मा रंग रच रच बरसे...
लरिका भी भीज लीं, मेहरारू भी भीज लीं,
मेहरारू भी भीज लीं, परानिवा भी भीज लीं,
उहों भीज लईली जो अस्सी बरस की
फगुनवा मा रंग रच रच बरसे...