स्वामी रामतीर्थ, एक परिचय
स्वामी रामतीर्थ का जन्म २२ अक्तूबर १८७३ को पंजाब के गुजरानवाला ज़िले में हुआ था। जो अब पाकिस्तान में है। भारत में उस समय विदेशी साम्राज्य का बोल बाला था। सदियों की ग़ुलामी के कारण अज्ञानता, लाचारी, दरिद्रता ने देश में बुरी तरह घर कर रखा था। एक शायर ने उस समय के भारत को ‘लाश-बे-कफ़न’ की संज्ञा दी थी।
ऐसे वातावरण में स्वामी जी एक युगपुरुष के रूप में अवतरित हुये। मातृ विहीन बचपन का सादा, सात्विक जीवन व्यतीत करते हुये उन्होंने ज़िला स्कूल से एन्ट्रेन्स तथा पंजा�� विश्वविद्यालय से १८९४ में एम. ए. की डिग्री सम्मान पूर्वक प्राप्त की। वहां भी सादगी का जीवन व्यतीत किया। उनकी कुशाग्र बुद्धि तथा स्वाभाविक सरलता से सभी प्रभावित थे। पंजाव सिविल सर्विस का प्रस्ताव ठुकराकर उन्होंहे शिक्षक बनना अधिक श्रेयस्कर समझा और गणित के प्रोफ़ेसर नियुक्त हुये। इसके साथ-साथ कृष्ण भक्ति, साधु सेवा उनके जीवन के मुख्य अंग थे। उसी बीच स्वामी विवेकानन्द तथा जगदगुरु शंकराचार्य से उनका संपर्क हुआ। १८९९ में उन्होंने सन्यास ग्रहण किया और हिमालय की ओर चले गये तथा उसके बाद देश विदेश भ्रमण – इस संदर्भ में जापान, अमेरिका मिश्र, इत्यादि की यात्रा विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
अपने तैतींस वर्षीय जीवन में उन्होंने अपनी अमृतमयी वाणी के द्वारा देश में नया जीवन, नई चेतना का संचार किया – भारत ही नहीं, वरन समस्त विश्व में वेदान्त के संदेश का डंका बजा कर मानव जाति की भूली हुई संपदा (ब्रह्मविद्या) की स्मृति कराई। उनके उपदेशों ने समकालीन सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक विचार-धारा तथा मानव-मानव को नज़दीक लाने में चमत्कारी प्रभाव डाला। उनके विचारों की जो महत्ता तब थी आज भी है –और सदैव रहेगी, क्योंकि सत्य तो अमर और अपरिवर्तनीय है। सन १९०६ में दीपावली के दिन स्वामी जी गंगा माता की गोद में सदा के लिये विलीन हो गये।