Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 42 of 144
४२.
मोरपखा गल गुंज की माल किये बर बेष बड़ी छबि छाई।
पीत पटी दुपटी कटि में लपटी लकुटी ‘हटी’ मो मन भाई॥
छूटीं लटैं डुलैं कुण्डल कान, बजै मुरली धुनि मन्द सुहाई।
कोटिन काम ग़ुलाम भये जब कान्ह ह्वै भानु लली बन आई॥