Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 41 of 144
४१.
अन्त रहौ किधौं अन्तर हौ दृग फारे फिरौं कि अभागिन भीरूं।
आगि जरौं या कि पानी परौं, अहओ कैसी करौं धरौं का विधि धीरूं॥
जो ‘घनआनन्द’ ऐसौ रूची, तो कहा बस हे अहो प्राणन पीरूं।
पाऊं कहां हरि हाय तुम्हें, धरनी में धंसूं कि अकाशहिं चीरूं॥