Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 38 of 144, Prayer to Krishna
३८.
ऐसी करा नव लाल रंगीले जू चित्त न और कहूं ललचाई।
जो सुख दुख रहे लगि देहसों ते मिट जायं आलोक बड़ाई॥
मागति साधु वृन्दाबन बास सदा गुण गानन मांहि विहाई।
कंज पगों में तिहारे बसौं नित देहु यहै ‘ध्रुय’ को ध्रुवताई॥