Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 39 of 144
३९.
योगिया ध्यान धरैं जिनको, तपसी तन गारि के खाक रमावै।
चारों ही वेद ना पावत भेद, बड़े तिर्वेदी नहीं गति पावैं॥
स्वर्ग औ मृत्यु पतालहू मे जाको नाम लिये ते सवै सिर नावैं।
चरनदास कहै, तेहि गोपसुता, कर माखन दै दै के नाच नचावैं॥
Sawaiya poetry from vrindavan is in Brajbhasha and is used beautifully in raslilas.