Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 27 of 144
२७.
ज्यों भरि कै जल तीर धरी निरखे त्यों अधीर ह्वै न्हात कन्हाई।
जानैं नहीं तेहि ताकन में ‘रतनाकर’ कीन्ही महा टुनहाई॥
छाई कछू हरू आई शरीर में नीर में आई कछू गरुआई।
नागरी की नित की जो सधी साई गागरी आज उठ न उठाई॥