हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम। राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम


लंका की ओर जाते समय हनुमान्‌जी को मैनाक पर्वत ने थोड़ी देर अपने ऊपर विश्राम करने का आमंत्रण दिया | भक्ति और कर्मनिष्ठा से भरे हुए हनुमान जी ने पर्वत को हाथ से छू कर प्रणाम किया और कहा- श्री रामचंद्रजी का काम किए बिना मुझे विश्राम कहाँ?
nitin



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