Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 20 of 144
मानस हों तो वही ‘रसखान’, मिलूँ पुनि गोकुल गाँव के ग्वारन । जो पसु होऊँ कहा वस मेरो, चरूँ पुनि नन्द के धेनु मझारन ॥ पाहन हों तो वही गिरि को, जो कियो जिमि छत्र पुरंदर कारन । जो खग होऊँ वसेरो करूँ, नित कालन्दी कूल कदम्ब की डारन ॥ Raskhan says