चित्त की शांति के लिये ख़ाली मन को ईश्वर की याद में भरकर र्खा जाये, तो यह सब से अधिक लाभदायक होगा। भंग या शराब हम में मस्ती नहीं भर सकती, मस्ती तो स्वयं हमारे ही अंदर है। मुसीबतों, बीमारियों, तकलीफ़ों और क्लेशों को ईश्वर का आशीर्वाद समझो जो हाथी के अंकुश की नाई तुमको ठीक उसी रास्ते पर लगाये रहते हैं। - यहां शोक, दुख, क्लेश और मुसीबतों की ज़िंदगी तो अवश्य ही है किन्तु यदि तुम इनसे बचना चाहो तो शुद्ध और सात्विक विचारों की वायु अपने चारों ओर फैलाते रहो – इस प्रकार सांसारिक चिन्ताओं की विषैली गैस तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकेगी।
- वे लोग जो सदाचारी हैं और न्याय-संगत तथा स्वार्थ रहित जीवन, दूसरों की भलाई व सेवा में बिताते हैं, सच पूछा जाये तो वही ईश्वर की सच्ची सेवा करते हैं।
- ईश्वर को याद करते समय अपने आप को उसके समक्ष पूर्ण रूप से आत्म समर्पण कर दो और अपने जीव भाव को ईश्वरत्व के विश्वव्यापी भाव में विलीन कर दो, अर्थात अपने जीव की परिछिन्नता तो ईश्वर की अपरिछिन्नता में तल्लीन कर दो।
~ स्वामी रामतीर्थ (२२ अक्तूबर १८७३- दीपावली १९०६)
उपासना की जान समर्पण और आत्मदान है, यदि यह नहीं तो उपासना निष्फल और प्राण रहित है। - जिस जाति में भलाई, सत, या ईश्वर पर विश्वास, श्रद्धा या इसलाम नहीं हैं, वह जाति विजय नहीं पा सकती।
- जब तक सांसारिक दृष्टि वाली श्रद्धा, सीधी होकर आत्मा (कृष्णः) की सहगामिनी और तद्रूपा न होगी तब तक न तो अहंकार (कंस) मरेगा, और न स्वराज्य मिलेगा। मारो ज़ोर की लात इस उल्टे विश्वास को, अलिफ़ की भांति सीधी कर दो इस कुमारी श्रद्धा की कमर।
- ब्रह्मदर्शन की रीति आ गई तो जहां दृष्टि पड़ी, ब्रह्मानन्द लूटने लगे। प्रतीक उपासना तब सफल होती है जब वह हमें सर्वत्र ब्रह्म देखने के योग्य बना दे। सारा संसार मन्दिर बन जाये, हर पदार्थ राम की झांकी दिखाये और हर क्रिया पूजा हो जाये।
- वह आत्मदेव जिसकी शक्ति से संपूर्ण संसार स्थिर है और जिसकी शक्ति से संपूर्ण कामनायें पूरी होती हैं, उसको कोई विरले ही मांगते हैं और शेष सब संसारी वस्तुपं को, जो बिल्कुल तुच्छ, हीन और वास्तव में अवस्तु हैं, मांगते रहते हैं।
- धर्म शरीर और बुद्धि का आधार है। मन और बुद्धि का ईश्वर में लीन हो जाना ही धर्म है – ईश्वर को मानने वाले की बात और होती है और जानने वाले की और।
- वह व्यक्ति जो अपने समय का ठीक ठीक सदुपयोग करता है, सच पूछो तो वही जीवित मनुष्य कहलाने का अधिकारी है।
- वह व्यक्ति जिसको संसार के विषय और वासनायें नहीं हिला सकतीं, वह निस्सन्देह सारे संसार को हिला सकेगा।
- पवित्र आचरण, जितेन्द्रिय और शुद्ध विचारों से भरे हुये, सच्चे निश्चय वाले मनुष्य का शरीर और मन प्रकाश स्वरूप हो जाता है और ईश्वर का तेज और शान्ति-आभा उसके मुख मंडल पर साफ़ चमकने लगते हैं।
~ स्वामी रामतीर्थ (१८७३-१९०६)
यदि आपके जीवन में सांसारिक विषय भोगों तथा माया-मोह का बोलबाला नहीं है तो अवश्य ही आप संसार को प्रभावित करने की क्षमता प्राप्त कर लेंगे। - अपने दृष्टि-बिन्दु को एकदम बदल डालिये। हर एक चीज़ को ईश्वर रूप, ब्रह्म्रूप समझिये। ईश्वर और सृष्टि का जो संबन्ध है, वही आपका और संसार का संबन्ध होना चाहिये – पूर्ण परिवर्तन।
- उन्नति के लिये वायुमंडल तैयार होता है सेवा और प्रेम से, न कि विधि नेषेधात्मक आज्ञाओं और आदेशों से।
- आत्म भाव के क्षण वे हैं जब सांसारिक रिश्तों, सांसारिक सम्पत्ति, सांसारिक विषय वासना और आवश्यकता के विचार, एक ईश्वर के भाव में, एक सत्य में लीन हो जाते हैं।
- शरीर से ऊपर उठो, अपने इस व्यक्तित्व भाव को, अपने क्षुद्र अहंकार को जला दो, नष्ट कर दो, फूंक डालो – तब आप देखेंगे कि आप की इच्छायें सफल हो रही हैं।
- राम (स्वामी रामतीर्थ), भगवान बुद्ध, हज़रत मुहम्मद, प्रभु ईसा मसीह अथवा अन्य पैग़म्बरों के समान लाखों, करोड़ों अनुनायी नहीं बनाना चाहता। वह तो हर एक स्त्री, हर एक बच्चे में राम का ही प्रादुर्भाव करना चाहता है। उसके शरीर को, उसके व्यक्तित्व को कुचल डालो, रौंद डालो, पर सच्चिदानन्द आत्मा का अनुभव करो। यही राम की सेवा पूजा है।
- विश्वास की शक्ति ही जीवन है।
~ स्वामी रामतीर्थ (1876 से 1906)