This time let Diwali see a NEW You! Celebrate Diwali in a new way. I hope this poem touches a chord in your heart! इस दिवाली पर कुछ नया कर जाएँ - एक कविता
Wish you and your loved ones an awesome Diwali !
Written and recited by : Shailendra Rana (https://www.linkedin.com/in/shailendrarana/)
Editing by: Aditi Rana (https://www.facebook.com/GopalandFriends/)

प्रश्न: कोई चीज़ मिथ्या हो तो उसे छोड़ना कठिन नहीं होता। ये जगत मिथ्या है ये जानने के बाद भी छूटता क्यों नहीं। इसे छोड़ने का तरीका क्या है ?
श्री श्री: अरे ! भगवान ने नहीं छोड़ा तो तुम क्यों छोड़ रहे हो। भगवान का अनुकरण करते हो तो छोड़ने की चेष्टा क्यों करते हो। न पकड़ने की चेष्टा करो, न छोड़ने की। सेवा करो। दुनिया है तो ये काम करने के लिए है। जबकि हम दुनिया की निंदा करते हैं। निंदा करने से तुम आगे नही बढ़ पाओगे। भगवान कृष्ण गीता में कहते हैं कि ये सृष्टि मेरी है, मेरी अपनी माया है ये, और मेरी कृपा से ही तरोगे। और तरने के लिए ही तो ये सब योगाभ्यास, ध्यान, साधना आदि हैं। ये सब अंतर्मुखी होने के लिए हैं। सेवा करने से आनंद मिलता है, और अगर समाज को पकड़ के कुछ चाहते हो तो दुःख मिलता है।
चढ़इल चैत चित लागे न बाबा के भवनवा
बीर बमनवा सगुन बिचारो
कब हुइहैं पिया से मिलनवा
चढ़इल चैत चित लागे न बाबा के भवनवा
Chaiti is a folk genre in Indian music from Uttar Pradesh, Bihar.
A Kajari song from Mirzapur by Malini Awasthi. It is sung in the rainy season, especially on Kajali Teej festival at Vindhyavasini Devi temple, Mirzapur, Uttar Pradesh, India.
अरे रामा सावन मा घनघोर बदरिया छाई रे हारी
घन उमड़ घुमड़ के छाये, उत कजारे घन छाये रे रामा
अरे रामा झींगुर की छनकारि, पिया को लागे प्यारी रे हारी
झूला पड़ा कदम की डारि, झूलें ब्रिज के नर नारि
अरे रामा पेंग बढ़ावे राधा प्यारी, पिया को लागे प्यारी रे हारी
अरे रामा सावन मा घनघोर बदरिया छाई रे हारी
बदरिया छाई रे हारी
बाबा निमिया के पेड़ जिनि काटियो रे, निमिया पे चिरैया के बसेरे,
बलैंया लेहुं भैया के
बाबा सगरी चिरैया उड़ि जैहे
रहि जइ निमिया अकेलि
बलैया लेहुं भैया के
बाबा सगरी बिटिया घरि चले जइहे
माई रहि जाये अकेलि
बलैया लेहुं भैया की
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा
मोरे प्रान बसे हिमखोह रे बटोहिया
जाओ जाओ भैया रे बटोही हिंद देखि आओ
जहां ऋषि चारो वेद गावे रे
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा
मोरे प्रान बसे हिमखोह रे बटोहिया
गंगा के, जमुना के जगमग पनिया रे
सरजू झमकि लहि जावे रे
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा रे
मोरे बाप दादा की कहानी रे, बटोहिया
रंगी सारी गुलाबी चुनरिया रे, मोहे मारे नजरिया सांवरिया रे
पहनी सारी गुलाबी चुनरिया, मोहे मारे नजरिया सांवरिया रे
जावो जी जावो, करो ना बतियां
अजी बाली है मोरी उमरिया रे, मोहे मारे नजरिया सांवरिया रे, रंगी सारी…
बीत चुकी है सारी रतिया, अभी लौटे नहीं हैं सांवरिया रे, मोहे मारे…