Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 14 of 144

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१४. मेरो स्वभाव चितैवे को माई री, लाल निहारि कै बंसी बजाई । बा दिन सों मोहिं लागो ठगौरी सी लोग कहैं लखि बाबरी आई ॥ यों ‘रसखानि’ घिरी सिगरो ब्रज जानत है जिय की जियराई । जो कोऊ चाहै भली अपनो, तो सनेह न काहूसों कीजियो माई ॥ In this

08 October, 2009

Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 13 of 144

radha krishna, Banke bihari ke sawaiya

१३. आपकी ओर की चाहैं लिखी, लिखि जात कथा उत मोहन ओर की । प्यारी दया करि वेगि मिलो, सहिजात व्यथा नहि मैंनमरोर की ॥ आपुहिं बाँचत अंग लगाबति, है किन आनी चिठी चितचोर की । राधिका मौन रही धरि ध्यान सो, है गई मूरति नन्दकिसोर की ॥ More

06 October, 2009

Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 12 of 144

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१२. एक सखी घर सो निकसी, मानो चंदहि देन चली उपमा सी । कोऊ कहै यह काहू की नगरि, कोऊ कहै यह काहू की दासी ॥ मारग बीच मिले नंदनंदन, दै दई कूक मचाय के हाँसी । घूँघट को पट खैंच लियो, तब दोज की हो गई पूरनमासी ॥ This sawaiya verse from

06 October, 2009

Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 11 of 144

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नवनीत गुलाब से कोमल है ‘हठी’ कंज को मंजुलता इन में । गुललाला गुलाल प्रबाल जपा छबि ऐसी न देखी ललाइन में ॥ मुनि मानस मंदिर मध्य बसैं बस होत हैं सूधे सुभाइन में । रहु रे मन तू चित चाहन सों वृषभानु कुमारी के पाइन में ॥ This sawaiya verse from

29 September, 2009

Sri Banke Bihari ke sawaiya, 10 of 144

Honey bee on flower

१०. प्रेम पगे जु रँगे रँग साँवरे, माने मनाये न लालची नैना । धावत है उत ही जित मोहन रोके रुकै नहिं घूघट ऐना ॥ कानन को कल नाहिं परै बिन प्रीति में भीजे सुने मृदु बैना । ‘रसखान’ भई मधु की मखियाँ अब नेह को बंधन क्यों हूँ छुटेना ॥ Bhakti

29 September, 2009

Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 9 of 144

kadamb flower

सोनजुही की बनी पगिया औ चमेली को गुच्छ रह्यो झुक न्यारो । द्वै दल फूल कदम्ब के कुण्डल, सेवती जामा है घूम घुमारो ॥

27 September, 2009

Sri Banke Bihari ji ke sawaiya, 8 of 144

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सारी सँवारी है सोन जुही की, चमेली की तापे लगाई किनारी । पंकज के दल को लहंगा, अँगिया गुलबाँस की शोभित न्यारी ॥

27 September, 2009

Sri Banke Bihari ke sawaiya, 7 of 144, poems from Vrindavan

बनराज निकुन्ज निवासी बनैं, यमराज समाज समावे समाधा । छवि छैल ‘छबीले’ की जीवनज्योति, जपै जब कीरतनंदनी राधा ॥ More sawaiya verses

15 September, 2009

Sri Banke Bihari ke sawaiya, 6 of 144

Radha Raman temple, Janmashtami in Vrindavan/India. 2009, Padmanabha Goswami, Sharad Goswami, Chandan Goswami

छवि छैल ‘छबीले’ रँगीले लसै, ब्रजवासिन कारज साधिका के । नन्दनन्दन वन्दत आनन्दसों, पद पंकज वन्दत राधिका के ॥ A Bhakti poet named Chabeele has written these sawaiya verses in praise of Sri Krishna and Radhika.

13 September, 2009

Sri Banke Bihari ke sawaiya, 5 of 144

Radha Krishna's Raas Lila

ब्रज गोपिन गोपकुमारन की, विपिनेश्वर के सुख साज की जै जै । ब्रज के सब संतन भक्तन की, ब्रजमण्डल की ब्रजराज की जै जै ॥ This sawaiya (verses) are in praise of Braj bhoomi (Vrindavan and surrounding villages). …Praise for gardens and flower bowers,

12 September, 2009



    I see God